मूल रूप से ग्राम्या का विचार फरवरी 2006 में धरातल पर आया, जब खुशहाली के संस्थापक समीर मोहन जी ने बरेली पीलीभीत रोड़ पर एक खेत में झोपडी डालकर रहने का फैसला किया। जो खेत और झोपडी जहां कुछ कार्यकर्ता बिना बिजली के न्यूनतम सुविधाओं के साथ रहते थे वही खुशहाली की पहचान बन गयी। इस केन्द्र को सर्वप्रथम जैविक खेती के प्रशिक्षण के लिए तैयार किया गया। यहां गाय के गोबर से जैविक खाद बनाने, गौमूत्र, नीमखली जैसी चीजों से कीटनाशक बनाने और नेडप जैसी विधियो से कचरे के माध्यम से जैविक खाद बनाने जैसे कार्य प्रारम्भ किये गये। साथ ही साय आसपास के बीस गांवो के किसानों से सम्पर्क साधा गया और उन्हें इस केन्द्र पर लाकर,जैविक खेती करने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। धीरे-धीरे कई किसनों ने प्रशिक्षण प्राप्त कर अपनी खेती को जैविक तरीके से करने का निर्णय लिया। इनके जैविक उत्पाद को खुशहाली ने शहर में रहने वाले अपने कार्यकर्ताओं एवं सहयोगियों को, उपलब्ध कराया जिससे किसानों को इन जैविक उत्पाद का उचित मूल्य मिलने लगा। इसी बीच शहर के कुशल डाक्टर्स को गांवो में लाकर, चिकित्सा कैम्प लगाने और आई0वी0आर0आई0 के वैज्ञानिको के सहयोग से जानवरों की चिकित्सा के कैम्प आयोजित किये जाने के कार्य भी प्रारम्भ कर दिये गये।
धीरे-धीरे गांवो को संख्या बढ़ने लगी और इनमें किये जाने वाले कार्य भी। जैविक खेती,चिकित्सा कैम्पस के साथ-साथ गावों में बच्चों के लिये शिक्षा केन्द्र,सिलाई कढाई प्रशिक्षण केन्द्र,और व्यामशालायें एवं बच्चियों भी प्रारम्भ कर दी गयी। समय के साथ खुशहाली 50 से अधिक गांव तक दस्तक दे चुकी है और इन गांवो के किसानों को खुशहाल बनाने के ये सभी प्रयास आज और भी तीव्र गति से जारी है।